कमाल की हैं उत्तराखंड की ये महिलाएं, घास को बनाया आजीविका का साधन, खूब कमा रहीं पैसे
उत्तराखंड में कोरोना वायरस से मचे कोहराम के बीच जो सबसे अच्छी चीज निकल कर सामने आई है वो है स्वरोजगार की तरफ लोगों का रुझान।
स्वरोजगार से जहां लोग अपनी बेरोजगारी दूर कर रहे हैं। वहीं दूसरों को भी रोजगार का अवसर दे रहे हैं। चंपावत में थारू जनजाति गांव बमनपुरी-बनबसा के स्वयं सहायता समूह की पूरे प्रदेश में आज चर्चा हो रही है। इस समूह की महिलाओं ने कमाल कर दिखाया है। समूह कि 50 से ज्यादा महिलाओं ने घास को आजीविका का साधन बनाया है। ये महिलाएं घास से घरेलू उपयोग की वस्तुएं बनाकर अच्छी कमाई कर रही हैं।
समूह की महिलाओं द्वारा बनाए गए टोकरियों, फूलदान और हॉट पाट की बाजार में अच्छी खासी मांग है। ऐसे में उत्पादों की मांग बढ़ने पर जिला प्रशासन ने इनके लिए मार्केटिंग की व्यवस्था की है। इन महिलाओं ने रिंगाल और मौज घास को आजीविका का साधन बनाया है। जिला परियोजना निदेशक विम्मी जोशी के मुताबिक, ये महिलाएं अपने उपयोग के लिए घास से निर्मित टोकरियां, फूलदान और अन्य वस्तुएं बनाती थीं। उनके कौशल को देखते हुए राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत उन्हें ग्रामीण प्रशिक्षण संस्थान आरसेटी से प्रशिक्षण देकर इनके कौशल का विकास किया गया।
स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाओं में से एक नीरू राणा कहती हैं कि जिला प्रशासन उनके कौशल को देखते हुए आरसेटी से 30 दिन का प्रशिक्षण दिया, जिसमें इसके रख-रखाव, पैकिंग और दूसरी तरह की जानकारी दी गई। उन्होंने बताया कि उनके द्वारा बनाए गए उत्पादों की बाजार में अच्छी खासी मांग है। राज्य सरकार भी स्वरोजगार को बढ़ावा दे रही है, जिससे लोगों को फायदा हो रहा है।