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उत्तराखंड स्पेशल: 82 साल बाद 11वें साल में पड़ रहा कुंभ..तब हुआ था दर्दनाक हादसा!

82 साल बाद इस बार हरिद्वार कुंभ बारह की बजाय ग्यारह साल बाद पड़ रहा है। 11 साल बाद कुंभ पड़ने पर दर्दनाक कहानी जुड़ी है। 1938 में कुंभ के दौरान भीषण हादसा हुआ था।

हरिद्वार में अगले साल होने वाले कुंभ की तैयारी जोरों पर चल रही है। प्रशासन कुंभ की तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है। सुरक्षा से लेकर सुविधा के स्तर पर श्रद्धालुओं को किसी कमी का ऐहसास ना हो प्रशासन इसकी पूरी तैयारी कर रहा है। इस बार खास ये है कि 82 साल बाद इस बार हरिद्वार कुंभ बारह की बजाय ग्यारह साल बाद पड़ रहा है। इससे पहले 1938 में कुंभ ग्यारह साल बाद पड़ा था। हालांकि 11 साल बाद कुंभ पड़ने पर दर्दनाक कहानी जुड़ी है। 1938 में कुंभ के दौरान भीषण हादसा हुआ था। गंगा पार बसा मेला भीषण आग के बाद पूरी तरह उजड़ गया था और भगदड़ में सैकड़ों यात्रियों को जान भी गंवानी पड़ी थी।

कुंभ मेले बारह साल बाद आते हैं। ग्रहों के राजा बृहस्पति कुंभ राशि में प्रत्येक बारह साल बाद प्रवेश करते हैं। प्रवेश की गति में हर बारह साल में अंतर आता है। यह अंतर बढ़ते बढ़ते सात कुंभ बीत जाने पर एक साल कम हो जाता है। इस वजह से हर आठवां कुंभ ग्यारहवें साल में पड़ता है। साल 1927 में हरिद्वार में सातवां कुंभ था। आठवां कुंभ 1939 में बारहवें साल आने की बजाय 1938 में ग्यारहवें वर्ष आया। तब नाव का पुल बनाकर गंगा के पार वर्तमान शोल क्षेत्र और रोड़ी मैदान में 1938 का कुंभ मेला लगा था।

ये मेला और बाजार हजारों छप्परों में लगा था। अचानक छप्परों में हलवाई की भट्टी से आग लग गई। देखते ही देखते यह आग पूरे मेला क्षेत्र में फैल गई। इससे भगदड़ मच गई और सैकड़ों यात्रियों को जान गंवानी पड़ी। इनमें कई जल गए और कई गंगा में बह गए थे। उस समय आज की तरह प्रबंध नहीं होते थे। उसी भयावह कांड के बाद 1950 के कुंभ मेले से व्यापक प्रबंध शुरू हुए।

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