उत्तराखंड स्पेशल: रहस्यमयी झील, जहां तैरते हैं कंकाल!
चमोली जिले में रूपकुंड झील है। इस झील को कंकाल झील से भी जाना जाता है। घने जंगलों से घिरी यह झील हिमालय की दो चोटियों त्रिशूल और नंदघुंगटी के तल के पास है।
उत्तराखंड रहस्यों से भरा है। एक तरफ यहां की प्राकृतिक सौंदर्यता लोगों को अपनी तरफ खींच लाती है। दूसरी तरफ पहाड़ों के इस प्रदेश के अनेकों रहस्यों को जानने हर साल बड़ी तादाद में लोग यहां आते हैं। ऐसा ही एक रहस्य चमोली जिले में रूपकुंड झील में छिपा है। इस झील को कंकाल झील से भी जाना जाता है। घने जंगलों से घिरी यह झील हिमालय की दो चोटियों त्रिशूल और नंदघुंगटी के तल के पास है। इस झील की पर लगभग 5,092 मीटर की ऊंचाई पर है और इसकी गहराई करीब 2 मीटर है। ये झील टूरिस्टों के लिए हमेशा आकर्षण का केंद्र है। हर साल जब भी बर्फ पिघलती है तो यहां कई सौ खोपड़ियां देखी जा सकती हैं। हर साल सैकड़ों पर्यटक इस झील को देखने आते हैं और यहां मौजूद नरकंकालों को देख कर हैरान रह जाते हैं।
स्थानीय लोगों की रहस्य के पीछे क्या है मान्यता?
झील के बारे में स्थानीय लोगों में भी एक कथा प्रचलित है। स्थानीय लोगों के मुताबिक इस झील में नरकंकालों के मिलने के पीछे की वजह नंदा देवी का प्रकोप है। एक प्रचलित कथा के मुताबिक कन्नौज के राजा जसधवल अपनी गर्भवती पत्नी रानी बलाम्पा के साथ यहां तीर्थ यात्रा पर पर निकले थे। राजा पत्नी के साथ हिमालय पर मौजूद नंदा देवी मंदिर में माता के दर्शन के लिए जा रहे थे। स्थानीय पंडितों और लोगों ने राजा को भव्य समारोह के साथ मंदिर में जाने से मना किया, लेकिन वो नहीं माने और पूरे जत्थे के साथ ढोल नगाड़े के साथ इस यात्रा पर निकले। इस दिखावे से नंदा देवी नाराज हो गईं। इस दौरान बहुत ही भयानक बर्फीला तूफान आया और बड़े-बड़े ओले गिरे। जिसकी वजह से राजा और रानी समेत पूरा जत्था रूपकुंड झील में समा गया।
कब हुई झील में मौजूद कंकालों की खोज?
रूपकुंड झील में मौजूद नरकंकालों की खोज सबसे पहले 1942 में हुई थी। इसकी खोज एक नंदा देवी गेम रिज़र्व के रेंजर एचके माधवल ने की। साल 1942 से हुई इसकी खोज के साथ आज तक सैकड़ों नरकंकाल मिल चुके हैं। यहां हर लिंग और उम्र के कंकाल पाए गए हैं। इसके अलावा यहां कुछ गहने, लेदर की चप्पलें, चूड़ियां, नाखून, बाल, मांस भी मिले है जिन्हें संरक्षित करके रखा गया है।
वैज्ञानिकों ने क्या कहा?
कहानियों से पर्दा उठाने के लिए वैज्ञानिकों ने इसकी पड़ताल शुरू की। वैज्ञानिकों के मुताबिक झील के पास मिले लगभग 200 कंकाल नौवीं सदी के भारतीय आदिवासियों के हैं। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने इस बात की भी पुष्टि की इन आदिवासियों की मौत किसी हथियार की वजह से नहीं बल्कि भीषण ओलों की बारिश होने की वजह से हुई थी।