उत्तराखंड के देवताओं की नगरी कहा जाता है। बड़ी तादाद में लोग हर साल यहां बदरीनाथ और केदारनाथ के अलावा दूसरे धार्मिक स्थलों पर आते हैं।

चमोली जिले के जोशीमठ से करीब 50 किलोमीटर दूर एक गांव है जिसका ना नीति है। इस गांव में द्रोणागिरी पर्वत है, जिसका इतिहास रामायण काल से जुड़ा है। लोगों ने कि ये मान्यता है कि श्रीराम-रावण के बीच युद्ध में मेघनाद के दिव्यास्त्र से लक्ष्मण मुर्छित हो गए थे। इसके बाद हनुमानजी द्रोणागिरी पर्वत संजीवनी बूटी लेने के लिए आए थे। इसलिये यहां के लोग हनुमानजी से ज्यादा इस पर्वत को तवज्जो देते हैं और पर्वत को ही देवता मानते हैं। लोगों का मानना है कि हनुमानजी इस पर्वत का एक हिस्सा ले गए थे, इस वजह से गांव के लोग हनुमानजी की पूजा नहीं करते हैं।

ऐसे कहा जाता है कि हनुमानजी संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पा रहे थे। तब उन्होंने द्रोणागिरी पर्वत का एक हिस्सा उखाड़ ही लिया था और इस पूरे हिस्से को लेकर लंका गए थे। ये पहाड़ बदरीनाथ धाम से करीब 45 किमी दूर है। बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल बताते हैं कि आज भी द्रोणागिरी पर्वत का ऊपरी हिस्सा कटा हुआ लगता है। इस हिस्से को हम आसानी से देख सकते हैं।

द्रोणागिरी पर्वत की ऊंचाई करीब 7,066 मीटर है। शीतकाल में भारी बर्फबारी की वजह से ये जगह पूरी तरह से खाली हो जाती है। गांव के लोग यहां से दूसरी जगह रहने के लिए चले जाते हैं। गर्मी आते ही लोग वापस यहां रहने आ जाते हैं।

कैसे पहुंचे द्रोणागिरी पर्वत?
जोशीमठ से मलारी की तरफ करीब 50 किलोमीटर की तरफ आगे बढ़ेंगे तो एक एक जगह आएगी, जिसता नाम है जुम्मा। यहीं से द्रोणागिरी गांव के लिए पैदल मार्ग शुरू हो जाता है। यहां धौली गंगा नदी पर बने पुल के दूसरी तरफ सीधे खड़े पहाड़ों की जो श्रृंखला दिखाई देती है, उसे पार करने के बाद द्रोणागिरी पर्वत पर आप पहुंच सकते हैं। संकरी पहाड़ी पगडंडियों वाला तकरीबन दस किलोमीटर का यह पैदल रास्ता बहुत कठिन है। ट्रैकिंग पसंद करने वाले काफी लोग यहां पहुंचते हैं। हर साल जून के महीने में द्रोणागिरी पर्वत की विशेष पूजा की जाती है।

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