उत्तराखंड का गौरवशाली इतिहास, देवभूमि के वो धरोहर जिनकी दुनिया भर में होती है चर्चा…पढ़िये
देवभूमि उत्तराखंड अपने अंदर सैकड़ों सालों से लाखों विरासतों को समेटे हुए है। देवभूमि की विरासतों, स्मारकों और लोखों पर आज भी देश और दुनिया में रिसर्च जारी है।
जिस देवभूमि की विरासतों और स्मारकों को दुनिया जानने के लिए हमेशा उत्सुक रहती है। उसे आज पहाड़ का युवा वर्ग भूलता चला जा रहा है। उत्तराखंड में कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं। सम्राट अशोक के 14 राजाज्ञाओं वाला शिलालेख इनमें से एक है जो राजधानी देहरान से 60 किलोमीटर दूर कालसी में है। ये शिलालेख राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक के तौर पर देश-दुनिया में मशहूर है। पुरातत्व विशेषज्ञों के अनुसार, कालसी स्थित अशोक शिलालेख के जरिये मौर्य वंश के सम्राट अशोक (273 ईसा पूर्व- 232 ईसा पूर्व) ने इस शिलालेख के माध्यम से जीव हत्या को निषेध बताया है। साथ ही इसके जरिए धर्म का भी प्रचार किया है। इसके अलावा ज्यदा से ज्यादा पौधरोपण, माता-पिता और गुरु का सम्मान करने, सहनशीलता, दयालुता का भी संदेश दिया है। इस शिलालेख में 5 यवन राजाओं का भी वर्णन किया गया है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के आंकड़ों के मुताबिक, देश के 3636 स्मारकों को राष्ट्रीय संरक्षित स्मारकों के तौर पर चिह्नित किया गया है। इन स्मारकों में 100 स्मारकों को आदर्श स्मारकों का दर्जा प्राप्त है। इन आदर्श स्मारकों में से 5 स्मारक उत्तराखंड में हैं। इनमें अल्मोड़ा स्थित जागेश्वर मंदिर, अल्मोड़ा का कटारमल सूर्य मंदिर, गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर, देहरादून जिले का लाखा मंडल स्थित शिव मंदिर और बागेश्वर स्थित बैजनाथ मंदिर समूह को आदर्श स्मारकों की सूची में शामिल है। ये सभी ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुए हैं।
वहीं, जौनसार बावर क्षेत्र के हनोल स्थित महासू मंदिर को पुरातत्व विभाग ने राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक की श्रेणी में रखा है। हूण भट्ट की ओर से स्थापित इस मंदिर में 4 देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। जिन्हें महासू, वासिक, पवासी और चालदा के नाम से पूजा जाता है। 3 देवताओं की मूर्तियां मंदिर में स्थापित रहती हैं। जबकि चौथे भाई चालदा देवता महासू क्षेत्र में भ्रमण करते रहते हैं। मंदिर के मूल प्रासाद का निर्माण नौवीं शताब्दी में किया गया। वास्तुकला के लिहाज से मंदिर स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है।
पुरातत्वविद् डॉ. राजीव पांडे के अनुसार, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से देवभूमि में 42 स्मारकों को राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक का दर्जा दिया है। इनमें कलिंगा स्मारक (खलंगा) देहरादून, कालसी स्थित अशोक शिलालेख, लाखामंडल स्थित शिव मंदिर, रुड़की में अंग्रेजों का कब्रिस्तान, उत्तरकाशी में खनित स्थल पुरोला, गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर, जगतग्राम स्थित अश्वमेध स्थल, आदिबदरी, हनोल स्थित महासू मंदिर, अल्मोड़ा के द्वाराहाट स्थित मृत्युंजय मंदिर समूह, बदरीनाथ मंदिर समूह, कटारमल स्थित सूर्य मंदिर, चंपावत में बालेश्वर मंदिर समूह, गुफा मंदिर पाताल भुवनेश्वर, गंगोलीहाट स्थित उर्त्कीण नौला, नैनीताल में वैराट पट्टन ढिकुली, सीमाबनी, मनियान मंदिर समूह समेत 42 राष्ट्रीय स्मारक शामिल हैं।