ELECTION RESULT: मोदी की सुनामी ने ‘बुआ-बबुआ’ के जातीय गणति को ऐसे ध्वस्त कर दिया
लोकसभा चुनाव के नतीजों से ये साफ हो गया है कि देश में इस बार भी सिर्फ और सिर्फ मोदी लहर है। मोदी की सुनामी में सभी पार्टियां बह गईँ। सारे राजनीतिक पंडितों की भविष्यवाणी फेल हो गई है।
इसी जीत के साथ ही एक सवाल भी उठ गया है कि क्या देश में खासकर सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में जाति की राजनीति का अंत हो गया है, क्योंकि यूपी में एसपी, बीएसपी और आरएलडी गठबंधन पूरी तरह से फेल हो गया है। सूबे में महागठबंधन का जातीय गणित औंधे मुंह गिरा है।
मोदी ब्रांड ने सारा गणित फेल कर दिया!
पारिवारिक झगड़े में उलझी समाजवादी पार्टी और पिछले लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार के बाद 2019 में उभरने की कोशिश कर रही बीएसपी और आरएलडी ने पूरानी दुश्मनी को भुलाकर इस बार गठबंधन किया। गणित साफ था, 40 फीसदी ओबीसी, 21 फीसदी दलित और मुसलमानों को साथ लेकर इस बार इतिहास रचेंगे और मोदी के विजय रथ को रोकेंगे। राजनीतिक पंडितों ने भी महागठबंधन के इस गणित पर मुहर लगाई थी, लेकिन हुआ बिल्कुल उलट। मोदी की सुनामी महागठबंधन बह गया।
बीजेपी ने गैर यादव और गैर जाटव दलित पर फोकस किया। पार्टी ने जातीय समूहों को अपनी तरफ खींच कर गणित को पूरी तरह से बदल दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह कह कर जाति युद्ध को वर्ग युद्ध में बदल दिया कि ‘मेरी जाति गरीब की जाति है।’ यही नहीं सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी आक्रामक हिंदुत्व अभियान के जरिए जातीय गोलाबंदी को कमजोर कर दिया। इस लोकसभा चुनाव में जिस तरह से गठबंधन परास्त हुआ है उससे उसके भविष्य पर भी प्रशनचिन्ह लग गया है।
नतीजों से ये तो साफ है कि एसपी और बीएसपी एक-दसरे को अपना वोट ट्रांसफर करने में कामयाब नहीं हो पाए। हालत ये हुई कि यादव परिवार के दो सदस्य बदायूं से धर्मेद्र यादव और फिरोजाबाद से अक्षय यादव चुनाव हार गए हैं। धर्मेंद्र यादव मौजूदा सांसद थे।
मुलायम ने किया था विरोध
बतौर एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने गठबंधन की पहल की। मुलायम सिंह यादव ने इसका विरोध भी किया था बावजूद इसके उन्होंने गठबंधन किया। ये पहली बार है जब अखिलेश यादव चुनाव मुलायम सिंह के मार्गदर्शन के बिना लड़े और बुरी तरह से हार मिली। मुलायम अपने क्षेत्र मैनपुरी तक ही सिमटे रहे।