देहरादून: स्वास्थ्य विभाग को लेकर CAG की रिपोर्ट से बहुत बड़ा खुलासा!
उत्तराखंड में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत बहुत खराब है। इसका खुलासा कैग की रिपोर्ट से हुआ है।
विधानसभा सदन में रखी गई कैग की जिला और संयुक्त अस्पतालो की लेखा परीक्षा से भी सामने आया। रिपोर्ट में कहा या है कि जिला अस्पताल रेफरल सेंटर बन कर ही रह गए हैं। यहां डाक्टरों, नर्सों, दवा, पैथोलॉजी के साथ ही दूसरे उपकरणों की कमी की वजह से मरीजों को ठीक से इलाज नहीं मिल पा रहा है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जिस अस्पताल ये सुविधाएं हैं भी वहां इनका इस्तेमाल सही तरीके से भी नहीं किया जा रहा है।
कैग ने लेखा परीक्षा के जरिए साल 2014-2019 के बीच जिला, संयुक्त चिकित्सालयों और महिला अस्पतालों का हाल जाना। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश में लोगों के स्वास्थ्य क्षेत्र में जबरदस्त सुधार की जरूरत है। हाल ये है कि स्वास्थ्य मामले में उत्तराखंड 21 राज्यों में 17 वें नंबर पर है। पहला खोट कैग को नीति के स्तर पर ही नजर आया। रिपोर्ट से ये बात भी सामने आई है कि राज्य सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में केंद्र की ओर से सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए तय किए गए मानकों को ही अपने यहां लागू नहीं किया है। OPD और भर्ती किए गए रोगियों के लिए समान मानक तय नहीं किए गए।
महिलाओं के प्रसव पर कैग ने जो रिपोर्ट दी है उसके मुताबिक जिन अस्पतालों में संस्थागत प्रसव हो रहे हैं, वहां कई तरह की कमियां हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रसव के दौरान मौत के मामले में प्रदेश का हाल बद से बदतर हो गया है। कैग रिपोर्ट यह भी बताती है कि प्रदेश के जिला और संयुक्त अस्पतालों में ट्रामा जैसे मामलों से निपटने की भारी कमी है। कई मरीजों को मुफ्त में दवाएं नहीं दी जा रही हैं। जरूरी दवाओं की भारी कमी है और जो दवाएं हैं भी उन्हें बांटा नहीं जा रहा है। अस्पतालों को पता ही नहीं हैं कि उन्हें क्या दवाएं रखनी हैं और क्या नहीं।
कैग ने क्या सिफारिशें की हैं?
कैब ने अपने सुझाव में कहा है कि प्रदेश में बेहद जरूरी स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सबसे पहले कार्ययोजना तैयार की जाए। इसके बाद सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए केंद्र की तरफ से जारी मानकों को लागू किया जाए और इन मानकों के हिसाब से ओपीडी, दवा की उपलब्धता, डॉक्टर, नर्स समेत दूसरे स्टाफ की तैनाती का प्रबंध किया जाए। गंभीर रूप से बीमार मरीजों के लिए 24 घंटे की आपातकालीन सेवाओं को उपलब्ध कराया जाए। जिला अस्पतालों में गंभीर रूप से बीमार नवजात शिशुओं के लिए सभी उपकरणों के साथ शिशु देखभाल इकाई की व्यवस्था की जाए। अस्पताल भवनों के रखरखाव की उचित व्यवस्था की जाए और दवाओं की गुणवत्ता की जांच की जाए।