सवर्णों को आरक्षण देने की इनसाइड स्टोरी: 10 फीसदी आरक्षण देने का बीजेपी को चुनाव में मिलेगा फायदा?
हाल ही में हुए 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद और लोकसभा चुनाव से ठीक पहले केंद्र की मोदी सरकार ने सवर्णों के वोट बैंक को साधने के लिए बड़ा दांव चला है। गरीब सवर्णों के लिए 10 फीसदी आरक्षण को मोदी कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है।
केंद्रीय कैबिनेट ने आर्थिक रूप से पिछड़े सवर्णों को सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में 10 फीसदी आरक्षण को मंजूरी दी है। मोदी कैबिनेट ने ईसाइयों और मुस्लिमों सहित ‘अनारक्षित श्रेणी’ के लोगों को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण देने के लिए यह फैसला लिया। इसका फायदा 8 लाख रुपये वार्षिक आय सीमा और करीब 5 एकड़ जमीन पर खेती करने वाले गरीब सवर्णों को मिलेगा।
मोदी कैबिनेट ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब उसे हाल ही में हुए पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में हार मिली है। वहीं लोकसभा चुनाव सामने है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में 15 सालों की सत्ता बीजेपी गंवा चुकी है। वहीं राजस्थान में भी उसे हार का सामना करना पड़ा। पिछले साल ही हिंद्दी पट्टी राज्यों में सवर्णों ने भारत बंद के दौरान उग्र प्रदर्शन किया था। खास तौर पर इसका असर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगड़ में देखने को मिला था। एससी/एसटी एक्ट में बीते साल सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अमान्य करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए संशोधन को लेकर सवर्ण नाराज थे।
उत्तर प्रदेश एक बड़ा राज्य है, जहां लोकसभा की 80 सीटें है। कहते हैं कि संसद में पहुंचने का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। जाहिर है यहां की 80 सीटें सरकार बनाने और गिरने में अहम भूमिका निभाती हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी यहां से 70 से ज्यादा सीटें निकालने में कामयाब रही थी। एक बार फिर लोकसभा चुनाव सामने हैं। लेकिन पिछली बार की तरह इस बार बीजेपी के हक में यूपी में हवा नहीं है। राज्य में 18 से 20 फीसदी के बीच सवर्ण हैं। जाहिर ये सवर्ण अगर बीजेपी के आरक्षण वाले दांव में फंसे तो उसे काफी फायदा हो सकता।
उत्तर प्रदेश में राजनीति की धुरी जाति पर टिकी रहती है। चुनाव यहां जाति के आधार पर लड़ा जाता है। ऐसे में बीजेपी को इस बात का बखूबी अंदाजा है कि उसका सवर्णों को आरक्षण देने का फैसला रामबाण साबित हो सकता है। देश के गरीब सवर्णों को लगातार आरक्षण दिए जाने की मांग की जा रही थी, जिसे सरकार ने चुनावी साल में पूरा कर दिया है। कहा जा रहा है कि सवर्णों को आरक्षण देने का कदम अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के मौजूदा 50 फीसदी आरक्षण में दिक्कत पैदा नहीं करेगा।