ईरान के सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद अमेरिका और ईरान के बीच तनाव और बढ़ गया है।फोटो: सोशल मीडिया

ईरान के सैन्य कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की मौत के बाद अमेरिका और ईरान के बीच तनाव और बढ़ गया है। दोनों देशों की तरफ से कार्रवाई भी की गई है।

ईरान ने दो टूक कह दिया है कि वो अपने सैन्य कमांडर की हत्या का बदला जरूर लेगा। इस घटना ने दोनों देशों को युद्ध के मुहाने पर लाकर खड़ा कर दिया है। ऐसे में सवाल ये है कि अगर दोनों देशों के बीच युद्द हुआ तो इसका दुनिया के साथ भारत पर क्या असर पड़ेगा?

अपनों को बचाने का संघर्ष होगा

दोनों देशों के बीच युद्ध होने पर भारत को काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ सकता है कि साथ ही आबादी की सुरक्षा के हित भी जुड़े हैं। पश्चिम एशियाई देशों में भारत के करीब 80 लाख लोग रहते हैं। इसमें से ज्यादातर लोग फारस की खाड़ी के तटीय इलाकों में रहते हैं। ऐसे में अगर इस इलाके के सीमित क्षेत्र में भी कोई सैन्य टकराव होता है तो भारत के लिए बड़ी चिंता अपने लोगों को बाहर निकालने को लेकर होगी। आपको बता दें कि ईरान के करीब संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, कुवैत समेत कई मुल्क हैं जहां भारतीय बहुत बड़ी तादाद में रहते हैं. विदेश मंत्राय के मुताबिक अकेले ईरान में 4000 भारतीय रहते हैं।

आर्थिक मोर्चे पर नुकसान होगा

युद्ध की हालत में भारत को आर्थिक मोर्चे पर काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्योंकि खाड़ी देशों में जो लोग रहते हैं वो ज्यादातर वहां कमाने के लिए गए हैं और बड़ी तादाद में अपने घरों में पैसा भेजते हैं। मुल्क में जो पैसा आता है वो देश के विदेशी मुद्रा भंडार का एक अहम हिस्सा बनाता है। अगर ये लोग वापस आए तो भारत को काफी नुकसान होगा।

तेल का संकट

दोनों देशों के बीच अगर युद्ध हुआ तो कहीं ना कहीं भारत को कच्चा तेल आयात करने में भी दिक्कत आएगी। क्योंकि खाड़ी क्षेत्र भारत जैसे दुनिया के बड़े ऊर्जा आयातक मुल्क के लिए खासा अहम है। हालांकि बीते दो सालों के दौरान ईरान और अमेरिका के बीच जारी तनाव के चलते भारत ने ईरानी तेल आयात को तो लगभग शून्य कर दिया है। लेकिन अब भी बड़ी तादाद में तेल ईराक, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात से आयात होता है। जिसका भारत तक पहुंचने का रास्ता फारस की खाड़ी में होर्मुज गलियारे से होकर गुजरता है।

रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत की भारत की जरूरत का करीब एक तिहाई तेल और आधा गैस आयात ओमान और ईरान के बीच स्थित इस होर्मुज के गलियारे से होकर देश आता है। अनुमान के मुताबिक करीब 8 करोड़ टन तेल इस रास्ते से रोज गुजरता है। ऐसे में अगर इस इलाके में वॉर के बादल मंडराते हैं तो तेल की आपूर्ति के लिए चुनौती खड़ी हो जाएगी। जिसका असर ये होगा कि तेल दूसरे रास्ते लाना होगा या फिर कच्चे तेल का दाम बढ़ जाएगा। आर्थिक मंदी के इस दौर में भारत जैसे मुल्क के लिए मंहगा तेल आयात जेब के लिए बहुत भारी पड़ सकता है।

निवेश पर पड़ेगा असर

भारत और ईरान के बीच साल 2014 में चाबहार बंदरगाह और जाहेदान रेल परियोजना को लेकर करार हुआ था। दोनों देशों के बीच चाहबहार बंदरगाह को विकसित करने के लिए भारत के 85 मिलियन डॉलर निवेश का समझौता हुआ था। युद्ध की स्थिति में इस पर भी असर पड़ेगा।

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