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उत्तराखंड: अल्मोड़ा में रामलीला के आयोजन पर कोरोना का संकट!

पिछले छह महीने में कोरोना ने लोगों की जिंदगी में ऐसा कहर मचा रखा है कि शायद ही ऐसा कोई सेक्टर होगा जिसको नुकसान नहीं पहुंचा हो।

अब खबर है कि अल्मोड़ा में हर साल होने वाले ऐसिहासिक रामलीला पर भी कोरोना का साया मंडरा रहा है। अभी तक ये पूरी तरह से तय नहीं हो पाया है कि कोरोना काल के बीच शहर में इस सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किस तरह से किया जाएगा। हालांकि आयोजकर्ताओं का कहना है कि सभी गाइडलाइन का पालन करते हुए रामलीला का आयोजन इस साल भी किया जाएगा। आपको बता दें कि अल्मोड़ा में रामलीला भैरवी, ठुमरी, विहाग, पीलू, समेत कई रागों के साथ की जाती है। इसमें जेजेवंती और राधेश्याम प्रमुख संवाद गाए जाते है। रागों में रामलीला गाना बहुत मुश्किल होता है। जिसके लिए यहां अभिनय करने वाले कलाकारों को 2 महीने से इस रामलीला की तालिम दी जाती है।

ऐतिहासिक है कमाऊं की रामलीला
ऐसा बताया जाता है कि कुमाऊं में रामलीला नाटक के मंचन अठारहवीं सदी में मध्यकाल के बाद हो चुका था। कुछ लोगों के मुताबिक इसकी शुरुआत कुमाऊं में पहली रामलीला 1860 में अल्मोड़ा नगर के बद्रेश्वर मंदिर में हुई थी। तब से इसका आयोजना होता आ रहा है। करीब डेढ़ सौ सालों से अल्मोड़ा में रामलीला का आयोजन किया जा रहा है और इसकी तैयारी भी दो महीने पहले ही शुरू हो जाती है।

यहां की रामलीला में करीब 60 लोग एक्टिंग करते हैं। कुमाऊं की रामलीला में राम, रावण, हनुमान और दशरथ के अलावा दूसरे कैरेक्टर में परशुराम, सुमंत, सूपर्णखा, जटायु, निशादराज, अंगद, शबरी, मंथरा और मेघनाथ के अभिनय देखने लायक होते हैं।

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